एकला चला रे ..
लो दोस्तों .. आज से हम भी शुरू हो गए .. कुछ ख़ास नहीं , बस कुछ इधर की और कुछ उधर की .. कभी जी में आया तो शब्दों के दांत दिखा दिए .. कभी दिल रोया तो शब्दों के आँसू बहा लिये .. कल का क्या भरोसा .. जीना है बस इन्ही एक एक पल में ..
धन्यवाद मित्र मानव कॉल का जिन्होंने आधुनिक ब्लॉग - परम्परा से परिचित कराया .. दो चार कमेंट्स की गोलियाँ उनके ब्लॉग पे दाग चुका हूँ .. अब सोचता हूँ अपने दिमाग का कचरा अपने ब्लॉग पर ही दफ़न करूं .. ज़मीन ख़ुद चुकी है .. आईये मर्सिया पढ़ें ..
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