Saturday, March 1, 2008


मैं .. स्वयं से ..

कौन हूँ मैं .. ?

अकेला .. अन्जाना .. बागी ..
जैसा मैं सोचता हूँ ..
या अरस्तू , इकलखोर , ज़िद्दी वगैरह ..
जैसा तुम कहते हो ..

बजरबट॒टू .. जैसा तुम कहते हो ..
जब मैं सिर्फ़ देखता हूँ , बोलता कुछ नहीं
कैद करता आंखों में खूबसूरती - पलों की ..

अरस्तू .. जैसा तुम कहते हो ..
जब मैं डूबा होता हूँ सोच के गहरे समंदर में
पहुँचने को किनारे किसी अनजानी रेत पे ..

जोकर .. जैसा तुम कहते हो ..
जब मैं हंसता हूँ दिल खोल के
जीता .. बनता मुस्कुराहटों का हिस्सा कुछ ‘अपनों’ की ..

झगड़ालू .. जैसा तुम कहते हो ..
जब मैं लड़ पड़ता हूँ हर उस ‘ग़लत’ के विरुद्ध
जो होता है विपरीत मेरी ‘सही’ की परिभाषाओं के ..

इकलखोर .. जैसा तुम कहते हो ..
जब मैं थक चुकता हूँ भीड़ से
और खो जाना चाहता हूँ किसी अंधेरे कोने में ..

जिद्दी .. जैसा तुम कहते हो ..
जब मैं अड़ जाता हूँ अपनी बात पे
दूसरों के हथियार डाल देने तक ..

अच्छा .. जो तुम कभी नहीं कहते ..
जब मैं होता हूँ नि:स्वार्थ ..
जब होता हूँ ईमानदार ख़ुद से , व दूसरों से भी ..
जब चलता हूँ न्याय के पथ पे ..
जब बाँट लेना चाहता हूँ सब के दु:ख ..
जब सोचता हूँ समस्त चर - अचर का भला ..
जब करता हूँ अखिल सृष्टि से प्रेम ..
जब रखता हूँ विश्वास 'वासुधैव कुटुम्बकम॒' सी उक्तिओं में ..
और यह सब मात्र सोच में नहीं
बल्कि सच में .. जीता इन्हें अपने जीवन में ..

जैसा तुम कहते हो ..
यह सब तो मात्र किताबी बातें हैं ..
इनसे क्या जीवन चलता है .. ?
इनसे क्या इंसान सफल होता है .. ?

जानता नहीं .. शायद हाँ .. शायद नहीं ..
पर बात यहाँ इच्छा की है , परिणाम की नहीं ..
बात प्रयास की है , जीत या हार की नहीं ..

प्रयास .. जिसमें जीना चाहता हूँ ..
सुकर्म से ..
प्रेम से ..
सद॒भाव से ..
ज्ञान से ..
मान से ..
गर्व से ..
इतिहास की दुखभरी कहानियों से हिम्मत हार कर नहीं
बल्कि उम्मीद पे .. एक सच्चे , स्वस्थ व सुंदर भविष्य की ..
और इच्छा पे .. ऐसे भविष्य की नींव का पत्थर बनने की ..

कौन हूँ मैं .. ?
एक सोच .. ?
एक स्वप्न .. ?
एक चिंतन .. ?
एक दु:साहस .. ?
एक अनुत्तरित प्रश्न .. ?

नहीं जानता ..
पर इतना अवश्य जान चुका हूँ ..
कि मुझे इतना जानकर भी
जान नहीं सके हो , अन्जान तुम
इसीलिए पूछ बैठते हो मुझसे अक्सर ..
कौन .. कौन हो तुम .. ??

1 comment:

RS said...

Awesome!!!!!!