Thursday, March 20, 2008


उम्मीद ..


नि:शब्द रात में ..
एक बयाबान सा है ..
कुछ सूखे बिखरे पत्ते ..
कुछ आड़े तिरछे रेखाचित्र ..
और वो , कुम्हलाया सा
एक धूप का टुकड़ा ..

सूरज यूं ही चाँद में बदलता हुआ ..
फिर सहमे सहमे तारों का ,
डर डर कर टिमटिमाना ..
और एक आवारा सा बवंडर ..
उठ कर सब कुछ निगलता हुआ ..

खुली हुई आखों में ,
एक कतरा नींद ..
जो कमर कस कर बैठी है ,
उड़ जाने को ..
छोड़ जाने को पीछे ,
कुछ थके-हरे अनदेखे सपने ..
और कुछ गीत भी , जो कभी
बंद आंखों ने गुनगुनाए थे ..

सर्द सी होती ज़मीन पे ,
कुछ बनते बिगड़ते क़दमों के निशान ..
और एक बहुत लम्बी सुरंग ,
थके क़दमों को ..
और भी थकाती हुई ..
क्या सब कुछ अँधेरा ही है ..?
अविराम .. मात्र एक शून्य .. ??

उम्र से लम्बी अंधी सड़क पर ..
सूखे पत्ते पावों में सरसराते हैं ..
और फिर एक नन्हा , क्षीण सा बिन्दु ,
उसी सर्द सी ज़मीन पर ,
थके क़दमों में गर्म सोतों सा लगता हुआ ,
बदलता एक बारीक किरण रश्मि में ..
फिर एक प्रकाश पुंज ..


शायद वो छोर है ..

और उस पार हैं ,
कुछ सीधे सुलझे रेखाचित्र ..
और वही , मगर मुस्कुराता हुआ ,
एक धूप का टुकड़ा ..



2 comments:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

भावपूर्ण कविता .
कुम्हलाए हुए धूप के टुकड़े से रूबरू ज़िंदगी
मुस्कुराते हुए धूप के टुकड़े का ठौर पा लेती है अंततः !
यह साखी -पन बड़े काम की चीज़ है भाई....बधाई !trvdm

Atul Mongia said...

Dear Malay

I just read your poem ' umeed '.

बहुत सुंदर है . बहुत खूब.

I've become your fan after reading it, there is promise of a true poet who ought to be published. Well friend you have just begun and believe me, just keep going...